Thursday, 5 April 2012

Posted by Unknown On 07:09
जयंत कस्तुआर कापरिचय 

भारत में प्रदर्शनकलाओं कीराष्ट्रीय अकादेमीसंगीत नाटक अकादेमीके पूर्वसचिव एवंसीईओ जयंतकस्तुआर आजभारतीय प्रदर्शनकलाओं कीदुनिया मेंउत्कृष्ट कत्थकप्रतिपादक, कला प्रशासक, प्रवक्ता, विचारकऔर पथ-प्रदर्शक हैं।26 जनवरी, 1955 को जमशेदपुरमें जन्मेऔर दिल्लीके सेंटस्टीफंस सेशिक्षित जयंतकस्तुआर लोकसेवा, अकादमिकऔर शास्त्रीयकला मेंउत्कृष्टता का अनूठा मिश्रण हैं।प्रदर्शन कलाओंके विषयपर सार्वजनिकरूप सेबोलने, राष्ट्रीयऔर अंतर्राष्ट्रीयशो केपरिकल्पना, स्टेज डिजाईन एवं प्रस्तुतीकरणमें उन्हेंसामान उत्कृष्टताहासिल है।उन्होंने कईराष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रोजेक्ट्स कोनेतृत्व प्रदानकिया हैऔर प्रदर्शनकला परम्पराओंके संरक्षणएवं संवर्धनके लिएकई महत्त्वपूर्णकदम उठाए, जिसके लिएदेशभर मेंउन्हें सम्मानकी नज़रोंसे देखाजाता है।भारतीय कलाओंके प्रचारएवं प्रसारऔर अंतर्राष्ट्रीयशो एवंकार्यक्रमों को डिजाईन करने केलिए अमेरिका, चीन, जापान, कोरिया, ब्राजीलआदि देशोंकी यात्राभी कीहै। 

भारत की सर्वोच्चसांस्कृतिक संस्थासंगीत नाटक अकादेमीके सचिवएवं सीईओके पदपर 12 सालोंतक रहनेके बादजयंत कस्तुआरने अपनीकला औरअकादमिक रूचिका पुनःअनुसरण करनेके लिएदिसंबर 2011 में स्वेच्छा से पदत्यागकर दिया. वर्तमान मेंवे अकादेमीकी कार्यकारिणीसभा (एग्जिक्यूटिवबोर्ड) केसदस्य हैं। वे मंच परपहली बारवर्ष 1957 और कत्थक का पहलाएकल प्रदर्शन1959 में दिया, जिसने उन्हेंअपने क्षेत्रमें 1960 केदौरान विलक्षणबालक केरूप मेंख्याति दिलाई।उन्होंने नृत्यकी प्रारंभिकशिक्षा गुरुश्री इन्द्रकुमार पटनायकसे हासिलकी, बादमें वेजयपुर घरानेके विख्यातगुरु पंडितदुर्गालाल के सानिध्य में आएऔर दिल्लीमें उच्चशिक्षा-दीक्षाप्राप्त की।आज वेपंडित दुर्गालालकी कत्थकशैली केविशिष्ट प्रतिनिधिके तौरपर जानेजाते हैं।    

जयंत कस्तुआर देशभरमें अपनानृत्य प्रदर्शनकर चुकेहैं औरनृत्य केमुख्य उत्सवोंमें भागले चुकेहैं. वेप्राचीन परंपराके एकलवादीअभिनय मेंदक्ष प्रदर्शनके लिएजाने जातेहैं. करीबआधी शताब्दीसे कत्थकनृत्य मेंरचे-बसेजयंत मौलिकताएवं परंपराका अद्भुततारतम्य प्रदर्शितकरते हैं. उन्हेंनृत्तयानिकि शुद्धनृत्य औरभाव- भंगिमाओंपर आधारितनृत्य एवंअभिनय दोनोंपर समानदक्षता प्राप्तहै. मौलिकघत्निकमेंउनकी विस्तृतपकड़ औरहिन्दुस्तानी ठुमरियों अथवा दूसरी परम्पराओंकी रचनाओंमें भावका रूपांतरप्रस्तुत करनेके लिएउन्हें काफीप्रशंसा प्राप्तहुई है।उन्होंने कलाकारों, नृत्य केविद्यार्थियों, अनुसन्धान कार्य में लगेविद्वानों, विश्वविद्यालय के छात्रों  और आईएफएस प्रोबेशनरों को लाभान्वितकरने केलिए कईव्याख्यान और नमूना-नृत्य प्रदर्शनभी कियेहैं। समयसमय परउन्होंने युवाविद्यार्थियों को नृत्य की शिक्षाभी दीहै, लखनऊ, भोपाल, पुणे, कोलकता, गुवाहाटीऔर दिल्लीआदि शहरोंमें कार्यशालाओंका आयोजनकिया हैऔर सैकड़ोंयुवा नर्तकोंका मार्ग-दर्शन कियाहै।
  
जिन मुख्य संस्थाओंया संगठनोंके लिएउन्होंने नृत्यकी प्रस्तुतिदी हैउनमें भारतकीसंगीतनाटक अकादेमी’, उत्तर प्रदेश, राजस्थान औरगुजरात कीसंगीत नाटकअकादमियां, जोनल सांस्कृतिक केंद्र औरमध्य प्रदेश, केरल, पश्चिमबंगाल, कर्नाटक, असम, गोवाऔर मणिपुरकी राज्यअकादमियां एवं सांस्कृतिक विभाग प्रमुखहैं। जिनप्रतिष्टित आयोजनों में उन्होंने अपनीकला काप्रदर्शन कियाहै उनमेंदिल्ली काकत्थक महोत्सव, मध्य प्रदेशका खजुराहोनृत्य महोत्सव, ओडिशा काकोणार्क महोत्सव, कोलकता काउदय शंकरउत्सव, मुंबईका नेहरुकेंद्र नृत्यउत्सव, लखनऊमें लच्छुमहाराज जयंती, वाराणसी कागंगा महोत्सव, राजगढ़ काचक्रधर समारोह, चिदंबरम कानाट्यांजलि, सारनाथ का बुद्ध महोत्सव, मणिपुर काभाग्यचंद्र नृत्य उत्सव और श्रीकृष्णगण सभा, ब्रह्मा गणसभा औरचेन्नई केभारत कालाचारके उत्सवउल्लेखनीय हैं

नृत्य में उनकीदक्षता औरउपलब्धियों के लिए उन्हें श्रीकृष्णगणसभा द्वारानृत्य चूड़ामणिऔर  चेन्नई की ब्रह्म गणसभा द्वारानाट्य पद्मकी उपाधिसे सुशोभितकिया जाचुका है. चंडीगढ काप्राचीन कलाकेंद्र उन्हेंनृत्य शिरोमणिसे सम्मानितकर चुकाहै. इसकेअतिरिक्त वेअसम केप्रतिष्टितरसेस्वर सैकिया बरबयाँ पुरुस्कारऔर भुवनेश्वरकी मर्दलाअकादेमी द्वाराताल वाद्यसम्मानसेभी सम्मानितकिये जाचुके हैं.



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